भारत में जातिवाद: कौन कहता है जातिवाद ख़त्म हो गया है?
अभी कुछ दिनों की बात है, महाराष्ट्र के वाशिम जिले के कलाम्बेश्वर गाँव में रहने वाले बापूराव ताजडे की पत्नी को पड़ोसियों ने सिर्फ इसलिए कुएं से पानी नहीं भरने दिया क्यूंकि वो नीची जाति से थी. वैसे तो ये कोई नयी बात नहीं है, लेकिन इस महिला के पति ने जो कर दिखाया वो किसी आश्चर्य से कम भी नहीं है.
इस बात से आहत हो कर ताजडे ने “मांझी द माउंटेन मैन” की तरह हठ कर ली और अपना कुआं खोदने की ठान ली. आठ घंटे मजदूरी करने के बाद 6 घंटे रोजाना खुदाई का काम करते हुए ताजडे ने 40 दिन में अपना कुआं खोद डाला और ये आज के आधुनिक भारत में जातिवाद के मुंह पर करारा तमाचा है.
ताजडे ने अपनी लगन से वो कर दिखाया जो वहाँ पर किसी ने भी सोचा नहीं था, क्यूंकि वहाँ पर आसपास के लगभग सभी कुएं और बोरवेल सूख चुके हैं. अब उस कुएं से गाँव के सभी दलित अपनी प्यास बुझा रहे हैं.
इतना होने के बावजूद ताजडे गाँव के उन तथाकथित उच्च जाति (निम्न हरकतों वाले ) के लोगों के नाम नहीं बता रहे हैं. वह कहते हैं इस से गाँव के आपसी सद्भाव को ठेस पहुंचेगी तथा लड़ाई झगड़े की सम्भावना भी हो सकती है.
जरा सोचिये क्या इसी तरह भारत से जातिवाद ख़त्म होगा?
फोटो साभार: www.ndtv.com, www.india.com