तांबे और पीतल के बर्तन क्यों पड़ते हैं काले?
तांबे के बर्तन में पानी पीना बहुत ही स्वास्थ्यप्रद है क्यूंकि यह शरीर में तांबे की कमी को पूरा करता है. तांबे के बर्तन में रखा पानी पूरी तरह शुद्ध माना गया है और यह कई तरह की बीमारियों के कीटाणुओं को नष्ट कर देता है.
यह पानी कैंसररोधी तत्वों से भरपूर होता है. रोजाना यह पानी उपयोग करने से पेट की कई समस्याओं से निजात मिल सकती है. तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से किडनी और लिवर स्वास्थ्य रहते हैं.
तांबे के बर्तन में पानी को 16 घंटे तक रखने के बाद आश्चर्यजनकरूप से बैक्टीरिया ख़त्म हो जाते हैं.
तांबे या पीतल के बर्तन कीमत में अधिक होने साथ इनका सावधानीपूर्वक रखरखाव किया जाता है. ताम्बा या पीतल पानी के साथ रासायनिक क्रिया करते हैं जो इसका औषधीय गुण है लेकिन इसी वजह से इनका रंग काला पड जाता है.
हमारे घरों में आजकल स्टील के बर्तन ही मिलते हैं क्यूंकि इनको साफ़ करना आसान होता है और ये तांबे और पीतल से ज्यादा चमकदार होने के साथ ही सस्ते होते हैं. लेकिन कुछ दशक पहले तक घरों में ताम्बा और पीतल के बर्तन आम बात हुआ करती थी. किन्तु सफाई में असुविधा की वजह से ये बर्तन रोजमर्रा के उपयोग से दूर होते चले गए.
ताम्बा शुद्ध धातु है जबकि पीतल ताम्बा (70%) और जस्ता (30%) की मिश्र धातु है. ये बर्तन वातावरण की नमी को सोख कर ऑक्सीडेशन कर लेते हैं और इन पर काले हरे रंग परत जैम जाती है. ये अम्लधर्मी होने के कारण साबुन या डिटर्जेंट से साफ़ करने के बाद फिर से काले पड जाते हैं. इन बर्तनो को धोकर कपडे से अच्छी तरह पोंछ कर सुखना चाहिए. इससे बर्तनों पर चमक अधिक दिन तक बनी रहती है.
इन कमियों की वजह से ही तांबे और पीतल के बर्तनो का उपयोग काम होता गया लेकि अब लोगों में इनके औषधीय गुणों की जानकारी होने से फिर से लोग इनका उपयोग शुरू कर रहे हैं.