सीधे शब्दों में , क्या वो दूकान घाटे में जा सकती है जिस पर ग्राहकों की भारी भीड़ लगी है. लोग सामान ख़रीदने के लिए लाइन में लगे हैं. जिन्हें सामान नहीं मिल रहा है वो अगले दिन आ रहे हैं लेकिन सामान उपलब्ध नहीं है.
लोग दीवाली का सामान लेने के होली से लाइन में लगे हैं. मुझे लगता है कि दुकानदार तो भारी मुनाफे में होना चाहिए, जिसकी दूकान इतनी चल रही है वो घाटे में हो भी कैसे हो सकता है. मेरा दैनिक अनुभव तो यही कहता है.
उस पर अगर सामान वापस करना है 70% कटौती के बाद अगर 30% ग्राहक को वापस मिले तो फिर तो दुकानदार कि तो बल्ले बल्ले ही हो जायेगी. सामान भी नहीं बिका और 70% कीमत का फायदा. फिर वही सामान दूसरे ग्राहक को तो बेचना ही है क्यूंकि इतनी लम्बी लाइन जो लगी है.
ऐसा अगर वास्तव में देखना हो तो रेलवे से अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता है. सभी गाड़ियों में वेटिंग कि लम्बी कतार, अगर टिकट कन्फर्म हो गया है और इसके बाद अगर वापस किया तो 70% कटौती के बाद 30% वापसी, तत्काल में भी वेटिंग, और तत्काल रिजर्वेशन में तो टिकट कैंसिल कराने पर कोई वापसी भी नहीं है.
रेलवे कि वेबसाइट से अगर टिकट करा रहे हैं तो सर्विस चार्ज, + बैंक का भी सर्विस चार्ज, दोनों की बल्ले बल्ले. रेलवे की वेबसाइट पर दुनिया भर का विज्ञापन, हवाई जहाज से लेकर होटल तक की बुकिंग उपलब्ध है. फिर भी रेलवे घाटे में.
जनरल डिब्बों की बात करें तो उनमे सीटों की संख्या से 10 गुने लोग भूसे की तरह भरकर यात्रा करते हैं. फिर भी रेलवे घाटे में.
समझ नहीं आता पैसा जा कहाँ रहा है.
रेलवे रेल नीर बेचती है, लेकिन स्टेशनों पे विदेशी कंपनियों का ही पानी बिकता दिखेगा. एक लीटर पानी 20 रुपये में, चाहे वो रेल नीर हो, किनले, बिसलरी या फिर एक्वाफिना. रेल नीर भी उतना ही मार्जिन कमाता है जितना दूसरी विदेशी कम्पनियाँ. पूरे स्टेशन पर पानी ठंडा करने वाली एकाध मशीन होती है वो भी ठंडी पड़ी होती है. मजबूरन यात्रियों को पानी की बोतल खरीदनी पड़ती है. हो सकता है बड़ी रिश्वत का खेल हो. एक ठीक ठाक स्टेशन पर एक दिन में हजार दो हजार पानी की बोतलें बिकना तो आम बात है. रिश्वत खिलाओ, ठंडा पानी होगा नहीं तो बोतलें ही बिकेगी.
अब रेलवे के बारे में इतना लिखा है तो बुलेट ट्रेन की बात ना करूँ ये कैसे हो सकता है.
बुलेट ट्रेन जब भी चलेगी तो वो हमारे देश की शान होगी. सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि सारा देश चाहता है की भारत हर क्षेत्र में आगे बढे और विकसित देशों को टक्कर दे. लेकिन उससे पहले हमें सिर्फ अमीरों और बिजनेसमैनों के बारे में सोचना बंद करके हर आम आदमी, किसान छोटी नौकरी करने वाले और दलितों, मजदूरों के बारे में भी सोचना शुरू करना पड़ेगा.
अब मुद्दा ये है की जब बुलेट ट्रेन चलेगी तो किसे फायदा होगा? जाहिर सी बात है, बिजनेसमैन, नेताओं और, और किसी को नहीं.और सब तो 2-4 घंटे से लेकर 10-12 घंटे देरी से चलने वाली ट्रेनों में ही यात्रा करेंगे.
अरे भाई, पहले इन ट्रेनों की दशा सुधार दो फिर बुलेट ट्रेन चला लेना. हम तो AC का भी ख्वाब नहीं देखते, शताब्दी, राजधानी तो दूर की बात है. उस पर बुलेट ट्रेन, बस जले पे नमक छिड़क लो. इस देश की 90% से ज्यादा आबादी जनरल डिब्बों और पैसेंजर ट्रेन में यात्रा करती है उनके लिए कोई सुविधाओं में सुधार नहीं, बस देश की 1-2% आबादी के सुविधाएं ही सुविधाएं.
चलिए वो सब छोडिए, ये सोचिये की गड़बड़ कहाँ है…
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