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किससे करूँ शिकवा शिकायत ,
किससे करूँ यारी दोस्ती ,
किससे करूँ नफरत दुश्मनी ,
यहाँ मैं अजनबी हूँ .
बेगाना शहर है ,
अनजान डगर है ,
सब अजनबी हैं ,
ये मेरा , वो मेरा ,
सब कुछ है मेरा ही मेरा ,
बस यही सियासत है ,
जो कुछ देखो
सब कुछ ले लो ,
कोई नहीं है अपना पराया ,
यहाँ मैं अजनबी हूँ .
सब मतलबपरस्त हैं ,
दोस्ती मतलब की ,
दुश्मनी मतलब की ,
प्यार भी मतलब का ,
सब मतलबी हैं ,
मतलब निकल गया ,
तो क्या तेरा क्या मेरा ,
छोडो सब कुछ है मेरा ,
भुला दिए सब रिश्ते नाते ,
भुला दिए सब आते जाते ,
यहाँ मैं अजनबी हूँ ,
बस ,
यहाँ मैं अजनबी हूँ ………….
— सुरेन्द्र मोहन सिंह