विनती – एक छोटी सी हास्य कविता रमा तिवारी की
मोहन पेपर देकर आया, मंदिर में जाकर विनती की: हे भगवान, बना पेरिस को शीघ्र राजधानी इटली की सुनी
मोहन पेपर देकर आया, मंदिर में जाकर विनती की: हे भगवान, बना पेरिस को शीघ्र राजधानी इटली की सुनी
एक ग़रीब परिवार था। बहुत पुरानी बात है। उनके यहाँ खाने के लाले थे। पिता ने बहुत मेहनत करके
धीरे से, कोई आहट न हुई
फिर आज तोड़ दी गयी आशंकाएं
इस बदरंग जमाने में
कुचल दी गयी संवेदनाएं
साधू संत अब
माया के पीछे पड़े हैं,
माया तो छोड़ो,
चरित्र से भी गिरे हैं.
और कुछ तो
अपनी दुकानदारी में लगे हैं.
आत्मा – परमात्मा
की बात करने वाले,
बीसियों पहरेदारों
से घिरे हैं.
इसलिए,
ऐ खुदा,
तुझसे नाराज हूँ,
इस बदलती दुनिया में,
पल पल होते हैं परिवर्तन.
देखने में अच्छे लगते,
पर सच जानता है अंतर्मन.
आज की इस दौड़-भाग वाली जिंदगी में लोग हँसते – मुस्कराते दिखाई पड़ते हैं लेकिन हकीकत में अंदर से टूटे हुए होते हैं. बड़े शहरों की जिंदगी शायद कुछ ऐसी ही है.
किसी को प्यार करना और उसे हमेशा के लिए पा सकना जिंदगी की सबसे खूबसूरत घटना है… लेकिन किसी को बेइंतिहा प्यार करना और उसे खो देना, यह जिंदगी की दूसरी ऐसी घटना है जो हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा होती है…
मुझे संकटों से बचाओ, यह प्रार्थना करने मैं तुम्हारे द्वार नहीं आया. मैं तो वह शक्ति मांगने आया हूँ, जो संकटों में संघर्ष कर खिलती है.
दाने गिनकर दाल मिलेगी,
गेंहूं की बस छाल मिलेगी.
आने वाली पीढ़ी को.
हम शहीदों की राहों के जलते दिए,
हमको आंधी भला क्या बुझा पाएगी.